शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

इन युवाओं पर निर्भर है....

आज अपने कैरिअर के प्रति बहुत ही सचेत हो चुके युवाओं के पास और कोई भी ऐसा रास्ता नहीं है की वो कहीं अपना रास्ता आसानी से चुन सके नित नए बदलाव के साथ वो और भी भटक से गए है और लगातार भटकते भी जा रहे है.आज देश में दिनों दिन बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई उन्हें गलत और बेमतलब के रास्ते पर ले जा रही  है,,और रही बात हमारी सरकार की तो ये लगता है की एक दिन ऐसा आएगा की बच्चे पैदा होने से पहले गर्भ में एक पी.ई.टी.(प्रेगनेंसी एलिजिबिल्टी टेस्ट) देगा जिससे पता लगे की बच्चा पैदा होकर कुछ करने के लिए एलिजिबिल् है या नहीं......
आज बच्चे स्कूल के बाद ये समझ नहीं पाते की हमें आगे कौन सा कोर्स करना चाहिए??? टेक्नोलोजी के साथ बढ़ाते नित नए कोर्स उन्हें भ्रम की स्थिति में डाल देते हैं.आज युवा रोजगार समाचार और ऐसे कई प्रतियोगिताएं की किताबें पढ़ते रहते है और नौकरी की तलाश में रहते हैं.अभी हाल में ही सभी ने देखा कि सरकार ने टी.ई.टी. को लेकर जो खेल खेला है वो सभी के सामने है बेचारे क्या करे वो लोग जिन्होंने बैंक ड्राफ्ट बनवाया फिर रद्द कराया और ऐसी स्थिति में तो यही लगता है क्या होगा इस देश का जब सरकार हर तरफ से इतनी लापरवाह है.
और तो और जब बात आई उत्तर प्रदेश प्लाटून कमांडर भरती बोर्ड की तो सरकार की राजनीति तो देखिये विवरण पुस्तिका में तो उन्होंने 1.पहला निर्देश दिया की पूरा पेपर 200 नंबर का होगा अंत में पूरे में से 160 प्रशन ही आया 2. निर्देश दिया की वही लोग पास माने जायेंगे जो सबमें से 50% अंक पाएंगे और हुआ ये की ठीक परीक्षा वाले दिन ही ये नया निर्देश आ गया कि वही अभ्यर्थी पास माने जायेंगे जो अलग अलग विषय में 40%अंक पाएंगे.अब सोचने वाली बात तो ये है की इसमें अभ्यर्थी की क्या गलती की नए नियम के साथ पेपर न दे ये तो सरासर अन्याय है,और तो और परीक्षा के दिन गाजीपुर केंद्र पर तो अजब ही माहौल था जब अभ्यर्थियों को कापियां ही गलत बांट दी गयीं और फिर कहीं जाकर डी.एम,और अन्य वरिष्ठ अधिकारीयों के आने के बाद फिर सिलसिलेवार कापियां बाटी गयीं.अब इसको लेकर हर जगह तरह तरह के बवाल हो रहे है फिर भी सरकार चेत नहीं रही है.
ये तो हैं सरकार की नीतियाँ अगर ऐसे ही  सरकार गलती पर गलती करती रही तो इन युवाओं के भविष्य का क्या होगा जब महंगाई अपनी चरम अवस्था पर है.
आज  विभिन्न तरह की वेबसाईट पर युवा अपना बायोडाटा भेज रहे है.आजकल पढाई या डिग्री का कोई महत्व  नहीं रह गया है बस जो जहाँ चाह रहा है वही फॉर्म भर रहा है और ये सब हमारी सरकार की राजनीति है,जो युवाओं कोपूरी तरह से भटका रही है.अगर ऐसा ही रहा तो क्या होगा इस आते नए साल में देश के भविष्य का क्या होगा जो पूरी तरह इन युवाओं पर निर्भर है, इसके लिए हमारी सरकार को चेतना होगा.

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

शायद यही है बदलाव

जिस तरह लोकपाल बिल के बारे में आधी अधूरी जानकारी होने के बावजूद भी बच्चे बच्चे के मन में जन आन्दोलन की भावना थी और लोगों ने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लिया था.ठीक उसी तरह लोकप्रिय हो चला गाना 'कोलावारी डी' आज देश और विदेशों में बहुत ही मस्ती और जोश के साथ सुना और गाया जा रहा है.आज भले ही इस गाने को तमिल भाषा में होने के कारण कोई अच्छे से समझ न पा रहा हो पर आज हो न हो कोलावारी डी को इतनी उपलब्धि तो मिल ही चुकी है जितनी कि खुद बनाने और गाने वाले ने न सोची हो.आपको बता दूँ कि इस गाने में तमिल और इंग्लिश दोनों शब्दों के होने से इसे तंग्लिश गाना कहा जाने लगा है.फिल्म स्टार रजनीकांत के दामाद धनुष और बेटी ऐश्वर्या के मजाक मजाक में किये गए प्रयास ने इस गाने को देश दुनिया में बेशुमार प्रसिद्धी दी है.
आज कोलावारी डी का अर्थ भले कोई जाने न जाने पर फिर भी बच्चे से बूढ़े तक कि जुबान पर 'वाई दिस कोलावारी डी' है और आज कल ये यूथ  एंथम बन चूका है....यूंकि वास्तव में कोलावारी डी का मतलब है 'जानलेवा गुस्सा'.इसी तरह बॉलीवुड में इसने अपनी अच्छी खासी पहचान बना ली है सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से लेकर डायरेक्टर कारण जोहर और ढेर सारे सितारों ने भी इसे खूब पसंद किया है.
प्रचार और प्रसार करने के सबसे अच्छे माध्यम बन चुके  फेसबुक और ट्वीटर जैसे और भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स  ने इसे अच्छी तरह प्रमोट कर एक अलग और ऊँचे मुकाम तक पहुचायां है.ये कोई पहली बार नहीं है कि किसी गाने को न समझते हुए भी लोगों ने खूब पसंद किया है अभी कुछ दिन पहले भी फेमस फिल्म "ज़िन्दगी मिलेगी न दोबारा" का गाना 'सेनोरिता' जिसके आधे से ज्यादा शब्द स्पेनिश में थे फिर भी लोगों ने उसे  बेहद पसंद किया.आज कल तो ऐसे गानों का प्रचलन सा है  फिलहाल जो भी है पूछने पर लोग कहते है कि समझ नहीं आता तो क्या हुआ उसकी धुन तो बहुत अच्छी लगती है अब बताईये क्या होगा इन गानों जब इनमे सुर ताल का कोई सामंजस्य ही नहीं समझ आता.मोबिलिटी के ज़माने ने इन सभी को उड़ने का एक नया पंख सा दे दिया है जिससे वो अच्छी और तरह और बेफिक्र होकर उड़ सके.
कुछ ऐसे दिन भी थे जब लोग धुन के साथ साथ गाने के बोल,सुर,ताल पर ज़यादा ध्यान देते थे पर आज तो लोग चाहे गाना स्पेनिश हो या तमिल,मराठी हो या बांग्ला भाषा में हो बस धुन अच्छी होनी चाहिए और या तो उस गाने को सुनने के बाद पैर थिरकने लगे.
अगर ऐसा ही रहा तो शायद कम्पोज़र गाने में शब्द और सुनने वाले सिर्फ धुन खोजेंगे न कि शब्द.
शायद यही है बदलाव समय के साथ सब एक न एक दिन बदल सा जाता है.