मंगलवार, 13 सितंबर 2011

हिंदी से ही हम सभी की पहचान है...

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं ब्लकि हमारी राज भाषा है.संविधान के भाग-१७ के अनुच्छेद ३४३ के अनुसार हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया है..आज भी हिंदी भाषा की पहुँच सबसे ज्यादा क्षेत्रों में हैं...पर आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता हुआ सा नजर आता है.पहले की पढ़ाई और अब की पढ़ाई में ज़मीन और आसमान का अंतर है...आज लोग हिंदी की बजाय अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दे रहें हैं....आज कल जिसे दो वाक्य अंग्रेजी नहीं बोलने आती उसे समाज से पीछे का समझा जाता है.आज लोग अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए कॉन्वेंट स्कूलों का सहारा ले रहे हैं.आज लोग परा-स्नातक की उपाधि तो ले लेते हैं पर दो लाइन न शुद्ध हिंदी लिख पाते हैं न बोल पाते हैं.आज सभी की मानसिकता हिंदी को लेकर बहुत ज्यादा बदल गयी है उन्हें लगता है की हिंदी तो बहुत सरल है और जहाँ तक मुझे लगता है अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी ज्यादा कठिन है.पहले के कबीरदास ,सूरदास,तुलसीदास,भारतेंदु हरिश्चंद्र,रामधारी सिंह दिनकर,महादेवी वर्मा,जैसे महान लोगों ने हिंदी को अपनी परकाष्ठा पर पहुँचाया था.इन लोगों ने हिंदी को एक नयी दिशा दी थी...परन्तु आज ये विलुप्त होती सी दिख रही है.हिंदी से बढ़ती इस तरह की दूरी से लोगों को छोटी (इ),बड़ी (ई),छोटा (उ),बड़ा (ऊ) में फर्क करना बड़ा मुश्किल सा हो गया है.आज अमूमन जिस तरह हम बोलते,बातचीत करते हैं उसी को हिंदी समझ लेते हैं...परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है...आज हिंदी दिवस है  और हर जगह बड़े बड़े शहरों,जिलों आदि में गोष्ठी,सभाएं,चर्चाएँ  आदि हो रही होगी..क्यूंकि हमारे यहाँ तो जिस दिन जो भी दिवस पड़ता है उस दिन उसको बखूबी याद किया जाता है. हिंदी से बना हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानी होने के नाते हमारा ये फ़र्ज़ बनता की हिंदी भाषा को हम सभी बढ़ावा दें जिससे हम आगे के लिए अपने कठिन रास्ते को आसन कर लें.हिंदी से ही हम सभी की पहचान है.

बुधवार, 7 सितंबर 2011

गलतियों को दोहराना हमारी आदत है ...

क बार फिर हुआ देश की राजधानी पर वार...इतनी बड़ी ,दिल देहला देने वाली घटना पर अब कल से बड़े बड़े नेताओं,मंत्रियों,और सलेब्रेटियों की टिप्पड़ियाँ और शोक सन्देश आना शुरू हो गए हैं और तुरंत लगभग लगभग सभी जगह सुरक्षा के कड़े इन्ज़ाम भी कर दिए गए.किसी ने कहा इस घटना से हमें बहुत दुःख है,किसी ने कहा भगवान सबको दुःख सहन करने की शक्ति दे,किसी ने कहा हमारी संवेदना सभी के साथ है...और किसी ने तो मुआवजे की घोषणा कर डाली..ये तो बात रही बड़े लोगों की पर घाटा होता है आम जनता का.इस पूरे देश की आम जनता क्या चाहती है,क्या सोचती है इससे किसी को कोई मतलब ही नहीं है.ये तो राजधानी की बात है और अभी कुछ ही दिन पहले १३ जुलाई २०११ को देश की आर्थिक राजधानी वालों ने भी इस मंज़र को बहुत करीब से ही देखा था.इन सभी मामलों में जान तो बस हम आम लोगों की ही जाती है...कभी किसी बड़े आदमी को कुछ नहीं होता वो तो बस घटना के बाद  हमेशा अपना दुःख प्रकट करने और संवेदना बाटनें में लग जाता है.सारी मीडिया घटना स्थल के बाद तमाम बड़े लोगों के पास उनका व्यक्तव्य लेने में लग जाती है.इतना कुछ होने के बाद भी कई नेता इस बीच राजनीति और सरकार तमाम दलीलें देना शुरू कर देती है.जहाँ जहाँ भी बम धमाके होते हैं वो कोई छोटी जगह नहीं होती,बड़ी राजधानी,बड़े शहर ही निशाना बनते हैं .जबकि देखा जाये तो वहां हर चीज़ के लिए जागरूकता सबसे ज्यादा है.वहां पर लोग जागरूक है और हर तरह से उन्हें सुरक्षित रखने की कोशिश भी की जाती है.और कई छोटी जगहों पर तो जागरूकता है ही नहीं...उदहारण के तौर पर अगर छोटे शहर या जगह पर किसी को कोई बैग लावारिस हालत में मिलता है तो वो सबसे पहले पुलिस को बताने की बजाय,वो खुद ही उसे लेकर भाग जायेगा .लेकिन बड़े शहरों में ऐसा नहीं है वह लोग तुरंत पुलिस सूचित करेंगे .पर फिर भी घटनाएँ रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं.कुल मिलाकर न तो हम जागरूक हैं और न ही हमारी सरकार.और समय समय पर ऐसे झटके खाना तो हमारी आदत सी हो गयी है ...आये दिन ऐसी घटना होना तो स्वाभाविक है.फिर टेलीविज़न पर ब्रेकिंग न्यूज़ और न्यूज़ पेपर में बड़ी बड़ी हेडलाईन्स  के साथ खबरें परोस दी जाएँगी.हमारे देश के ऊपर भी यही बात सच साबित होती है की अगर हमारी गलती से हमें कोई नुकसान है तो हमें गलती से सीख लेनी चाहिए और अगर हम अपनी गलती से भी सीख नहीं लेते और उस गलती को दोहराते हैं तो वो हमारी आदत बन जाती है.