शनिवार, 30 जुलाई 2011

सबसे पहले अक्षर अ होता है...

सफलता और असफलता के पीछे क्या हमने कभी सोचा कि इन दोनों  में  किसने सबसे बड़ी भूमिका निभायी है.मेरे अनुसार वो है हिंदी के स्वर  का अक्षर अ. इसी ने दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर कर दोनों को एक दूसरे से विपरीत कर दिया है.इस को सफलता से हटाने के लिए हम सब कितनी मेहनत करते है.अगर सफलता में अ लग जाये तो असफलता हो जायेगा और हमारा सारा जीवन जीना बेकार हो जायेगा.जब हम शुरू में स्कूल में पढ़ने जाते है तो हिंदी विषय में सबसे पहले हमें स्वर पढाया जाता है जिसमें  सबसे पहले अक्षर होता है वहीँ  से शुरुआत होती है हमारे असल ज़िन्दगी की जो हमें भविष्य के लिए सब सिखाती है.आज ऐसे ही सफलता और असफलता के बारे में सोचते सोचते अचानक इस अक्षर का बहुत बड़ा अंतर समझ में आया.लगा यही तो एक अक्षर है जो अधिकांश अक्षरों के अर्थों का पूरा पूरा मतलब ही बदल देता है जैसे अज्ञान,अलग,अचेत,अपमान आदि.आज हम सभी जो भी  मेहनत  कर रहे वो सफल होने के लिए जनाब यूं कहिये की उस असफलता में से को हटाने के लिए जिससे वो सफल बन जाये.

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

हम कर सकते हैं...

जहाँ आज हम बात करते है महिला सशक्तिकरण की वहीँ दूसरी ओर पुरुष के शक के दायरे में आ जाने से आज महिला कहीं भी सुरक्षित नहीं है.इधर कुछ दिनों में घटी घटनाओं ने दिल दहला कर रख दिया है और आज नारी पूरी तरह से  कमज़ोर नज़र आ रही है.वो पत्नी हो या प्रेमिका सभी आज पुरुषों के शक के दायरे में जी रहीं हैं.आज नगर हो या महानगर सभी जगह इस बात की चर्चा ज़ोरों पर है और रही बात शक की तो ये एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज अब तक नहीं है.एक नारी होने के नाते मैं उस दर्द को बखूबी समझ सकती हूँ जिसके पति ने उसे कुल्हाड़ी से काट कर मार डाला होगा..बीते कुछ दिनों पहले जौनपुर में भी एक ऐसी दर्द भरी दास्ताँ सुनने को मिली जिसमें पति द्वारा शक करने के कारण महिला ने ख़ुदकुशी कर ली थी.आज हमारा मीडिया,कई धारावाहिक सभी महिला उत्थान की बातें कर रहे हैं और दूसरी तरफ जाना माना शो इमोशनल अत्याचार ने इस शक के दायरे को और भी हवा दे दी है.उसमें बस यही दिखाया जा रहा है कि किस तरह से लोग अपने उस साथी की विश्वसनीयता का परीक्षण कराते हैं जिस पर उन्हें पिछले कुछ दिनों से सबसे ज्यादा भरोसा होता है,और रही बात उस शो की तो अभी तक शायद उनके यहाँ कोई ऐसा भाग नहीं दिखाया गया जिसमें  वो इंसान अपने को सही साबित कर सके.
इधर कुछ दिनों में दिल्ली,नॉएडा,गाज़ियाबाद,लखीमपुर जैसे बड़े नगरों में घटी कुछ घटनाओं ने मानों औरतों को बहुत ही ज्यादा कमज़ोर कर दिया है.आज माँ बाप अपनी बेटियों को पढ़ने या नौकरी करने के लिए कही भी दूर भेजने से डरते है.अगर यही स्थिति रही तो शायद आने वाला पल बहुत ही बुरा होगा....शायद मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी एक दिन ये समय आएगा जब पूरे देश की कमान सम्हालने वाली,अपने राज्य की मुख्यमंत्री,दिल्ली की मुख्यमंत्री,लोकसभा अध्यक्ष सभी एक महिला हैं और इनके होते हुए भी आज महिला अपने ही देश,राज्य,शहर में पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं.हर जगह तो छोड़िये खुद अपने परिवार में भी औरत आज सुरक्षित नहीं हैं.
हर क्षेत्र में आगे होने के बावजूद भी आज महिला को पुरुष के वर्चस्व के आगे झुकना पड़ता है.
इसके लिए मेरे हिसाब से खुद में महिला को मजबूत और समझदार होना पड़ेगा और सोचना होगा कि हम कर सकते हैं,तभी शायद हम आगे एक अच्छा,सुनहरा भविष्य देख पाएंगे.

शनिवार, 16 जुलाई 2011

कहते हैं वो स्वर्गवासी हो गया...

आज ऐसे ही ज़िन्दगी और मौत के बारे में सोचते सोचते एक शब्द पर जाकर दिमाग थोड़ा सा रूक गया वो शब्द मिला स्वर्गवासी.जिसे हम सभी आमतौर पर तब प्रयोग करते है जब कोई इन्सान मर जाता है तो कहते हैं वो स्वर्गवासी हो गया.फिलहाल ये शब्द अपनी जगह कहीं से भी गलत नहीं है...पर क्या हमने कभी सोचा कि जिस चाहरदीवारी से बनी छत में हम रहते हैं उसे भी तो हम स्वर्ग ही कहते हैं और उस छत के नीचे रहने से हम वहां के वासी हुए...और अभी मन में प्रशन चल ही रहा था कि घर पर एक सज्जन आये हुए थे और अपने घर के बारे में बातें कर रहे थे तभी उनके मुंह से निकल पड़ा कि बेटा मेरा घर तो बिलकुल स्वर्ग जैसा है तो मैंने कहा अंकल तब तो आप स्वर्गवासी हुए बस इसी बात पर भड़क गए बोले तुम क्या कह रही हो ऐसा नहीं कहते...तो मैंने उन्हें उसके शब्द के अर्थों से समझाया तो हँसने लगे बोले हाँ सही है...ऐसे ही कई ऐसे शब्द हैं जो हम जाने अनजाने में प्रयोग कर देते है पर उसका सही अर्थ नहीं जान पाते,वो तो बड़े बड़े विद्वान ही समझ पाएंगे.