

आज कल के बच्चों में वो सारी चीज़े तो खो सी गयी है.यहाँ तो आजकल बस विडियो गेम,लैपटॉप,टीवी से ही फुर्सत ही नहीं मिलती की दूसरी चीज़े भी देखी और खेली जाये?
पहले तो नंदन,चम्पक,कहानियों की किताबों से टाइम पास होता था साथ ही उनसे कोई न कोई सीख भी मिलती थी , पर वो अब नहीं देखने को मिलता.अब गली में वो चोर-सिपाही,आइस-पाईस,खो-खो,कबड्डी,दौड़ना,भागना सब पुरानी बातें हो गयी.बच्चे खेल खेल में ही ज़िन्दगी के बहुत पाठ पढ़ लेते थे. अब तो कंप्यूटर के ऑनलाइन गेम से ही टाइम नहीं मिलता.पहले तो दादी,नानी के किस्से कहानियों से रात बीत जाया करती थी पर अब तो बात हो गयी है कि "रिश्ता वही सोच नयी".
आज वैश्वीकरण के चलते दुनियां इतनी सिमट गयी है कि आज बच्चें जो मन के सच्चे होते है अपनी ही परिधि में पूरी तरह से कैद हो गए हैं.प्रतियोगिता के इस दौर में उनके दिमाग में चीज़े इतनी घर कर जा रही हैं कि वो आगे पीछे कुछ सोच नहीं पा रहे है.आज छुट्टियाँ भी हो रही हैं तो इस समय विभिन्न तरह के कोर्सेस आ गए हैं बच्चे उसी में उलझे हुए हैं और सोचते हैं कही हम उस आगे जाने वाली दौड़ में पीछे न छूट जाये और उसके लिए तरह तरह कि क्रियाएं सीख रहे हैं.आज गर्मी की छुट्टी के नाम पर बच्चे कई कोर्सेस कर रहे हैं.
पर मस्ती तो सिर्फ छुट्टियों के नाम में ही हैं...तब क्या धूप क्या छांव?सिर्फ घर से बाहर भागो और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करो.