रविवार, 29 मई 2011

"रिश्ता वही सोच नयी"

जून का महीना आने वाला है और,आने वाला है बच्चो के लिए पूरी तरह खेलने,कूदने,मौज,मस्ती वाला दिन.याद आता है वो अपनी बीती छुट्टियों वाला दिन जब छुटियाँ होने पर मम्मी कहती थी कि अब तो सब नानी जी के घर घूमने चलेंगे और हम सभी घूमने भी जाते थे.अब तो जैसे जैसे दिन बीतता है और उम्र बढ़ने के साथ साथ जिम्मेदारियां इतनी हो जाती हैं कि वो छुट्टियाँ कब आती हैं और कब चली जाती हैं पता ही नहीं चलता,अब तो फ़िलहाल छुट्टियों का पूरा पैमाना ही बदल गया है.अब के बच्चे तो इतने हाईटेक हो गए है कि कंप्यूटर और टेलीविजन के दौर में इनके हाथ में ना तो कॉमिक्स दिखती है ना ही दिखता है गुल्ली डंडा.
आज कल के बच्चों में वो सारी चीज़े तो खो सी गयी है.यहाँ तो आजकल बस विडियो गेम,लैपटॉप,टीवी से ही फुर्सत ही नहीं मिलती की  दूसरी चीज़े भी देखी और खेली जाये?
पहले तो नंदन,चम्पक,कहानियों की किताबों से टाइम पास होता था साथ ही उनसे कोई न कोई सीख भी मिलती थी , पर वो अब नहीं देखने को मिलता.अब गली में वो चोर-सिपाही,आइस-पाईस,खो-खो,कबड्डी,दौड़ना,भागना सब पुरानी बातें हो गयी.बच्चे खेल खेल में ही ज़िन्दगी के बहुत  पाठ पढ़ लेते थे.  अब तो कंप्यूटर के ऑनलाइन गेम से ही टाइम नहीं मिलता.पहले तो दादी,नानी के किस्से कहानियों से रात बीत जाया करती थी पर अब तो बात हो गयी है कि "रिश्ता वही सोच नयी".
आज वैश्वीकरण के चलते दुनियां इतनी सिमट गयी है कि आज बच्चें जो मन के सच्चे होते है अपनी ही परिधि में पूरी तरह से कैद हो गए हैं.प्रतियोगिता के इस दौर में उनके दिमाग में चीज़े इतनी घर कर जा रही हैं कि वो आगे पीछे कुछ सोच नहीं पा रहे है.आज छुट्टियाँ भी हो रही हैं तो इस समय विभिन्न तरह के कोर्सेस आ गए हैं बच्चे उसी में उलझे हुए हैं और सोचते हैं कही हम उस आगे जाने वाली दौड़ में पीछे न छूट जाये और उसके लिए तरह तरह कि क्रियाएं सीख रहे हैं.आज गर्मी की छुट्टी के नाम पर बच्चे कई कोर्सेस कर रहे हैं.
पर मस्ती तो सिर्फ छुट्टियों के नाम में ही हैं...तब क्या धूप क्या छांव?सिर्फ घर से बाहर भागो और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करो.

शुक्रवार, 27 मई 2011

यहाँ यादें बसती हैं.....



हर चीज़ का अपना एक समय होता जिसको एक दिन पूरा होना ही होना होता है ...वैसे ही आज मेरा भी हॉस्टल का दो साल पूरा हो गया.आज यहाँ मेरा आखिरी दिन है.यहाँ पर बिताया हुआ हर  पल बहुत सारी यादें छोड़ गया है हर उस बच्चे के लिए जो हॉस्टल में रहते है...यहाँ आकर बिलकुल भी ऐसा नहीं महसूस होता कि आप अपने घर से ज़रा सा भी दूर हैं.अलग अलग जगहों  से आने वाली लड़कियां  एक साथ मिलती हैं,तरह तरह की बातें होती है,लडाई,झगडा,रूठना,मनाना,कितना अच्छा लगता है....
बिताया वो हर बुरा और अच्छा पल हमेशा याद रहेगा.घर कि याद आने पर जब कोई रोता था तो सब उसे देख देख के रोने लगते थे और फिर कोई एक उठ के कहता था ऐ चुप रहो हम यहाँ पढने आये हैं कोई रोने नहीं.बहुत अच्छे पल बीते हैं हम सभी के यहाँ पर.
मै हमेशा सोचती थी कि कब यहाँ से छुट्टी मिलेगी कब मै अपने घर जाउंगी और वाकई आज जब यहाँ से जाने कि बारी आई तो बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा है यहाँ से जाना.कितनी यादें जुडी है हम सब कि यहाँ से.बात बात पर पार्टी लेते थे हम बस एक बहाना चाहिए था हम सभी को मस्ती करने का...ये दिन तो वाकई वापस नहीं आएगा पर बस याद आयेंगे वो पल जो बीत गए यहाँ पर.हर साल इतनी सारी नयी नयी लडकियां आती है.लोग मिलते हैं,पढ़ाई,लिखाई,मस्ती और फिर वापस जाना.ये सिलसिला तो इस होस्टल में न जाने कितने वर्षों से चला आ रहा होगा.  
वाकई आज सबसे अलग होना मुझे बहुत बुरा लग रहा है.इतने दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. यहाँ का मेस, दोस्तों का कमरा, वार्डन की बातें रह रह के दिमाग में गम रही हैं. बहुत सारी दोस्तें परीक्षा  खत्म होने के कारण अपने अपने घर चली गयी. जिनसे बहुत निकटता नहीं भी थी उनसे भी बिछुड़ने का गम आज हुआ. बहुत याद आयेगी हॉस्टल की यहाँ के ढेर सारे  दोस्तों की.

शनिवार, 21 मई 2011

आशाएं आशाएं आशाएं ....

शुक्रवार, २५ फरवरी २०११ को मैंने अपना ब्लॉग बनाया था और इस पर पहली पोस्ट  

माता पिता और उनकी आशाएं थी. माँ बाप का कर्ज पुरे जीवन में उनके लिए कुछ भी करके उतरा नहीं जासकता है.यह  पोस्ट 21 मई २०११ को बी पी एन  न्यूज़ पेपर में आशाएं आशाएं आशाएं .... शीर्षक में प्रकाशित हुई है. 

शुक्रवार, 13 मई 2011

अंकित नाम था प्यार से बुलाते थे सभी उसे लिटिल ......

न जाने हर दिन क्यों दुबारा लौट कर अपना एक एक साल पूरा
करता जाता  है.........और उस
बीते हुए लम्हों  कि  सारी यादों को दोहरा देता है..यादों को दोहराने के साथ साथ आँखों में कभी ख़ुशी तो कभी ग़म छोड़ जाता है..तभी तो आज १३ मई है और आज का दिन शायद मेरे और मेरे परिवार वालो के लिए बहुत ही
--------------- दिन होता है  ...
कहते हैं न कि तकदीर से ज्यादा कभी कुछ हासिल नहीं होता हमेशा उतना ही मिलता है,जितना मिलना लिखा होता है.ऐसा ही कुछ वाकया हमारे साथ भी १३ मई १९९८ को हुआ था.जब मेरा बड़ा भाई हमारे परिवार को छोड़ कर इस दुनिया से अलविदा कह गया.उसका नाम था अंकित पर प्यार से सभी उसे लिटिल बुलाते थे...घर का बड़ा बेटा जो था,सभी उसे बहुत प्यार करते थे.नाना, नानी, दादा, दादी सभी का उससे बड़ा लगाव था.माँ और पापा का तो दुलारा था.बहुत ही नटखट था हमेशा बदमाशी करना उसकी फितरत थी....पर हम सभी को वो छोड़ कर ऐसे चला जायेगा एक दिन कभी सोचा न था.
कहते है न अच्छे इन्सान ज्यादा दिन इस दुनिया में नहीं रहते.बस भगवन को भी यही मंजूर था और १३ मई १९९८ दिन बुधवार को एक ट्रेन दुर्घटना में वो हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया...जिसका दुख आज तक हमारे परिवार वालो को सताता है और शायद सताता रहेगा क्यूंकि ऐसे ज़ख़्म ज़िन्दगी में कभी नहीं भरते...और रह जाती हैं तो सिर्फ उनकी यादें.आज १३ मई का बीता वो दिन अपने १३ साल पूरे कर चुका है.
आज जैसे ही सुबह आँख खुली तो बस वही सारी चीज़े बस मन को थोड़ा परेशान कर रही है...पर समय बहुत ही बलवान होता है ये सारी परिस्थितियों को नियंत्रित कर देता है.आज से १३ साल पहले तो मै काफी छोटी थी फिर भी मुझे पूरी तरह से वो मंज़र याद है.मेरे भाई के जाने के बाद बहुत संभाला मैंने खुद को और अपने परिवार वालों को क्यूंकि उसके जाने के बाद घर में मैं ही बड़ी हूँ ....
इसी के साथ मै भगवान् से ये पूछना चाहती हूँ कि क्या जो हुआ वो सही था???
फ़िलहाल हम सभी भगवान् से प्रार्थना करते हैं कि वो जहाँ भी रहे भगवान् उसकी
आत्मा को शांति  दे ..

शनिवार, 7 मई 2011

माँ तो माँ ही होती है....

बड़ी अजीब बात है जब कोई विशेष दिन आने वाला होता है तो सभी जगह उसकी चर्चाएं ज़ोरों पर होने लगती हैं...उसके बारे में तरह तरह की जानकारियां भी मिलने लगती हैं हर जगह बस उस विशेष दिन की चर्चा होने लगती हैं....अब मदर्स डे को ही ले,कल ८ मई है और कल है मदर्स डे ..पिछले कई दिनों से इसकी चर्चा ज़ोरों शोरो से हो रही हैं.
जैसा मैंने फेस बुक पर भी लिखा है कि मेरी माँ मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी प्रेरणा है खैर माँ तो माँ ही होती है.उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है न ही उसका स्थान कोई और ले सकता है .सभी को अपनी माँ सबसे प्यारी होती है वैसे मेरी माँ भी मुझे सबसे प्यारी है.शायद मैंने उन्हीं से ज़िन्दगी को असल मायनों में जीना सीखा है.कदम कदम पर माँ ने मुझे सम्हाला है.आज मै जैसी भी हूँ जो भी हूँ उसकी वजह मेरी माँ है.माँ शब्द खुद में जितना प्यारा है और उतनी ही प्यारी होती है माँ.
माँ ही होती है जो हमें खाना,पीना,उठना,बैठना,सिखाती है.समाज में अच्छाई,बुराई की पहचान करना सिखाती है.बच्चे चाहे जितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ वो अपनी माँ के लिए हमेशा बच्चे ही होते हैं.माँ को हमेशा अपने बच्चों की फ़िक्र सबसे पहले और सबसे ज्यादा होती है,ऐसी ही मेरी भी माँ है.मै कोई भी छोटा या बड़ा काम अपनी माँ से ही पूछ कर करती हूँ.वो मुझे बहुत प्यार करती है,मेरी हर ज़रूरतों को पूरा करती है.मेरी माँ मेरा बहुत ख्याल रखती है.
भगवान्  करे दुनिया में सबको मेरी माँ जैसी ही माँ मिले.माँ मेरी सिर्फ माँ ही नहीं बल्कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी है जिससे मै अपनी सारी बातें भी शेयर करती हूँ.मै दुनिया में अपनी माँ को सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ...........हे माँ !अगले जन्म में भी तुम मेरी ही माँ बनकर मेरे पास आना.
दुनिया की सभी माँ को मेरा सलाम.!!!!

शुक्रवार, 6 मई 2011

ब्लॉग पोस्ट समाचार पत्र में..

BPN TIMES (Daily  News Paper) के ग्वालियर, आगरा, झांसी, धौलपुर, भोपाल, दिल्ली तथा इन्दौर संस्करण में प्रकाशित 

सोमवार, 2 मई 2011

मेरे ब्लॉग की पोस्ट BPN TIMES (Daily News Paper) में प्रकाशित

 
मेरे ब्लॉग की पोस्ट  BPN TIMES (Daily  News Paper) के ग्वालियर, आगरा, झांसी, धौलपुर, भोपाल, दिल्ली तथा इन्दौर संस्करण में प्रकाशित हुआ है.