शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

इन युवाओं पर निर्भर है....

आज अपने कैरिअर के प्रति बहुत ही सचेत हो चुके युवाओं के पास और कोई भी ऐसा रास्ता नहीं है की वो कहीं अपना रास्ता आसानी से चुन सके नित नए बदलाव के साथ वो और भी भटक से गए है और लगातार भटकते भी जा रहे है.आज देश में दिनों दिन बढ़ती बेरोजगारी और महंगाई उन्हें गलत और बेमतलब के रास्ते पर ले जा रही  है,,और रही बात हमारी सरकार की तो ये लगता है की एक दिन ऐसा आएगा की बच्चे पैदा होने से पहले गर्भ में एक पी.ई.टी.(प्रेगनेंसी एलिजिबिल्टी टेस्ट) देगा जिससे पता लगे की बच्चा पैदा होकर कुछ करने के लिए एलिजिबिल् है या नहीं......
आज बच्चे स्कूल के बाद ये समझ नहीं पाते की हमें आगे कौन सा कोर्स करना चाहिए??? टेक्नोलोजी के साथ बढ़ाते नित नए कोर्स उन्हें भ्रम की स्थिति में डाल देते हैं.आज युवा रोजगार समाचार और ऐसे कई प्रतियोगिताएं की किताबें पढ़ते रहते है और नौकरी की तलाश में रहते हैं.अभी हाल में ही सभी ने देखा कि सरकार ने टी.ई.टी. को लेकर जो खेल खेला है वो सभी के सामने है बेचारे क्या करे वो लोग जिन्होंने बैंक ड्राफ्ट बनवाया फिर रद्द कराया और ऐसी स्थिति में तो यही लगता है क्या होगा इस देश का जब सरकार हर तरफ से इतनी लापरवाह है.
और तो और जब बात आई उत्तर प्रदेश प्लाटून कमांडर भरती बोर्ड की तो सरकार की राजनीति तो देखिये विवरण पुस्तिका में तो उन्होंने 1.पहला निर्देश दिया की पूरा पेपर 200 नंबर का होगा अंत में पूरे में से 160 प्रशन ही आया 2. निर्देश दिया की वही लोग पास माने जायेंगे जो सबमें से 50% अंक पाएंगे और हुआ ये की ठीक परीक्षा वाले दिन ही ये नया निर्देश आ गया कि वही अभ्यर्थी पास माने जायेंगे जो अलग अलग विषय में 40%अंक पाएंगे.अब सोचने वाली बात तो ये है की इसमें अभ्यर्थी की क्या गलती की नए नियम के साथ पेपर न दे ये तो सरासर अन्याय है,और तो और परीक्षा के दिन गाजीपुर केंद्र पर तो अजब ही माहौल था जब अभ्यर्थियों को कापियां ही गलत बांट दी गयीं और फिर कहीं जाकर डी.एम,और अन्य वरिष्ठ अधिकारीयों के आने के बाद फिर सिलसिलेवार कापियां बाटी गयीं.अब इसको लेकर हर जगह तरह तरह के बवाल हो रहे है फिर भी सरकार चेत नहीं रही है.
ये तो हैं सरकार की नीतियाँ अगर ऐसे ही  सरकार गलती पर गलती करती रही तो इन युवाओं के भविष्य का क्या होगा जब महंगाई अपनी चरम अवस्था पर है.
आज  विभिन्न तरह की वेबसाईट पर युवा अपना बायोडाटा भेज रहे है.आजकल पढाई या डिग्री का कोई महत्व  नहीं रह गया है बस जो जहाँ चाह रहा है वही फॉर्म भर रहा है और ये सब हमारी सरकार की राजनीति है,जो युवाओं कोपूरी तरह से भटका रही है.अगर ऐसा ही रहा तो क्या होगा इस आते नए साल में देश के भविष्य का क्या होगा जो पूरी तरह इन युवाओं पर निर्भर है, इसके लिए हमारी सरकार को चेतना होगा.

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

शायद यही है बदलाव

जिस तरह लोकपाल बिल के बारे में आधी अधूरी जानकारी होने के बावजूद भी बच्चे बच्चे के मन में जन आन्दोलन की भावना थी और लोगों ने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा भी लिया था.ठीक उसी तरह लोकप्रिय हो चला गाना 'कोलावारी डी' आज देश और विदेशों में बहुत ही मस्ती और जोश के साथ सुना और गाया जा रहा है.आज भले ही इस गाने को तमिल भाषा में होने के कारण कोई अच्छे से समझ न पा रहा हो पर आज हो न हो कोलावारी डी को इतनी उपलब्धि तो मिल ही चुकी है जितनी कि खुद बनाने और गाने वाले ने न सोची हो.आपको बता दूँ कि इस गाने में तमिल और इंग्लिश दोनों शब्दों के होने से इसे तंग्लिश गाना कहा जाने लगा है.फिल्म स्टार रजनीकांत के दामाद धनुष और बेटी ऐश्वर्या के मजाक मजाक में किये गए प्रयास ने इस गाने को देश दुनिया में बेशुमार प्रसिद्धी दी है.
आज कोलावारी डी का अर्थ भले कोई जाने न जाने पर फिर भी बच्चे से बूढ़े तक कि जुबान पर 'वाई दिस कोलावारी डी' है और आज कल ये यूथ  एंथम बन चूका है....यूंकि वास्तव में कोलावारी डी का मतलब है 'जानलेवा गुस्सा'.इसी तरह बॉलीवुड में इसने अपनी अच्छी खासी पहचान बना ली है सुपरस्टार अमिताभ बच्चन से लेकर डायरेक्टर कारण जोहर और ढेर सारे सितारों ने भी इसे खूब पसंद किया है.
प्रचार और प्रसार करने के सबसे अच्छे माध्यम बन चुके  फेसबुक और ट्वीटर जैसे और भी सोशल नेटवर्किंग साइट्स  ने इसे अच्छी तरह प्रमोट कर एक अलग और ऊँचे मुकाम तक पहुचायां है.ये कोई पहली बार नहीं है कि किसी गाने को न समझते हुए भी लोगों ने खूब पसंद किया है अभी कुछ दिन पहले भी फेमस फिल्म "ज़िन्दगी मिलेगी न दोबारा" का गाना 'सेनोरिता' जिसके आधे से ज्यादा शब्द स्पेनिश में थे फिर भी लोगों ने उसे  बेहद पसंद किया.आज कल तो ऐसे गानों का प्रचलन सा है  फिलहाल जो भी है पूछने पर लोग कहते है कि समझ नहीं आता तो क्या हुआ उसकी धुन तो बहुत अच्छी लगती है अब बताईये क्या होगा इन गानों जब इनमे सुर ताल का कोई सामंजस्य ही नहीं समझ आता.मोबिलिटी के ज़माने ने इन सभी को उड़ने का एक नया पंख सा दे दिया है जिससे वो अच्छी और तरह और बेफिक्र होकर उड़ सके.
कुछ ऐसे दिन भी थे जब लोग धुन के साथ साथ गाने के बोल,सुर,ताल पर ज़यादा ध्यान देते थे पर आज तो लोग चाहे गाना स्पेनिश हो या तमिल,मराठी हो या बांग्ला भाषा में हो बस धुन अच्छी होनी चाहिए और या तो उस गाने को सुनने के बाद पैर थिरकने लगे.
अगर ऐसा ही रहा तो शायद कम्पोज़र गाने में शब्द और सुनने वाले सिर्फ धुन खोजेंगे न कि शब्द.
शायद यही है बदलाव समय के साथ सब एक न एक दिन बदल सा जाता है.

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

बाबाओं का क्रेज़...

आज कल सुबह सुबह आँख खोलो और अगर सोच लो की भगवान् का दर्शन कर लें तो वो बड़ा मुश्किल है.आजकल तो  भगवान् से ज्यादा ऊँचा दर्ज़ा ये आज कल के टी.वी. बाबा लोगों को मिल गया है.आज कल ये एक फैशन ट्रेंड सा हो गया है.अब तो अलग अलग धर्मों के लिए अलग अलग बाबा हो गए हैं.कोई हिन्दू धर्मं की तो कोई सिख धर्मं की बातें करता है.धर्म का प्रसार और प्रचार करने वालों ने हमेशा भगवान् को एक माना है पर इन लोगों ने तो पूरी तरह से भगवान् को जगह जगह अलग अलग समय में भी बाँट  दिया है.ये बाबा लोग खुद तो ईश्वर को एक ही बताते हैं पर ये खुद अलग अलग हो गए हैं.सुबह सुबह सोकर उठने के बाद बस अलग अलग चैनल पर आपको अलग अलग बाबा अपना प्रवचन सुनाते  मिल जायेंगे.आज ये एक स्टेट्स सिम्बल भी हो गया है.अब तो हमारी मीडिया भी इन बाबा लोगों को प्रमोट करती नज़र आ रही है.अब तो न्यूज़ दिखाने वाले चैनलों ने भी इनको अपनी एक नयी तस्वीर पेश करने के लिए रख लिया है.आज बाबा लोग एक ऊँचे से मंच पर बैठ जायेंगे और खूब ढेर सारे लोगों की भीड़ उनके सामने बैठी होगी और पूरे मन से वो उसी प्रवचन में लीन रहती हैं.
और बाबा लोगों से अगर फुर्सत मिले तो एक नए फैशन के तौर पर लोग अपने उत्पाद बेचते मिल जायेंगे.कही महालक्ष्मी श्री यन्त्र,पूजा से सम्बन्धित,तो कही कोई औषधि का प्रचार.......बहुत ज्यादा हुआ तो कुंडली का विश्लेषण करते अगले चैनल पर पंडित जी लोग मिल जायेंगे
आखिर ये सब क्या है पूरी तरह से दिशा भ्रमित करने का आसान तरीका ही तो है आम जनता को.
आज हम आम जनता के संवेदनाओ की क़द्र न करते हुए ये लोग आराम से अपने कार्यक्रम को बढ़ावा देते हैं.आज भोली-भाली जनता इस तरह के बहकावे में आ जाती है और पूरी तरह से धोखा खाती है.ज़िन्दगी से दिशाभ्रमित हो जाने वाले लोग इस मकड़ जाल में फंसते चले जा रहे हैं.

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

हिंदी से ही हम सभी की पहचान है...

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं ब्लकि हमारी राज भाषा है.संविधान के भाग-१७ के अनुच्छेद ३४३ के अनुसार हिंदी को संघ की राजभाषा का दर्ज़ा दिया गया है..आज भी हिंदी भाषा की पहुँच सबसे ज्यादा क्षेत्रों में हैं...पर आज आधुनिकता और बदलते वातावरण के चलते हिंदी से हमारा नाता खत्म होता हुआ सा नजर आता है.पहले की पढ़ाई और अब की पढ़ाई में ज़मीन और आसमान का अंतर है...आज लोग हिंदी की बजाय अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दे रहें हैं....आज कल जिसे दो वाक्य अंग्रेजी नहीं बोलने आती उसे समाज से पीछे का समझा जाता है.आज लोग अपने बच्चों को शिक्षा देने के लिए कॉन्वेंट स्कूलों का सहारा ले रहे हैं.आज लोग परा-स्नातक की उपाधि तो ले लेते हैं पर दो लाइन न शुद्ध हिंदी लिख पाते हैं न बोल पाते हैं.आज सभी की मानसिकता हिंदी को लेकर बहुत ज्यादा बदल गयी है उन्हें लगता है की हिंदी तो बहुत सरल है और जहाँ तक मुझे लगता है अंग्रेजी की अपेक्षा हिंदी ज्यादा कठिन है.पहले के कबीरदास ,सूरदास,तुलसीदास,भारतेंदु हरिश्चंद्र,रामधारी सिंह दिनकर,महादेवी वर्मा,जैसे महान लोगों ने हिंदी को अपनी परकाष्ठा पर पहुँचाया था.इन लोगों ने हिंदी को एक नयी दिशा दी थी...परन्तु आज ये विलुप्त होती सी दिख रही है.हिंदी से बढ़ती इस तरह की दूरी से लोगों को छोटी (इ),बड़ी (ई),छोटा (उ),बड़ा (ऊ) में फर्क करना बड़ा मुश्किल सा हो गया है.आज अमूमन जिस तरह हम बोलते,बातचीत करते हैं उसी को हिंदी समझ लेते हैं...परन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है...आज हिंदी दिवस है  और हर जगह बड़े बड़े शहरों,जिलों आदि में गोष्ठी,सभाएं,चर्चाएँ  आदि हो रही होगी..क्यूंकि हमारे यहाँ तो जिस दिन जो भी दिवस पड़ता है उस दिन उसको बखूबी याद किया जाता है. हिंदी से बना हिंदुस्तान और हिन्दुस्तानी होने के नाते हमारा ये फ़र्ज़ बनता की हिंदी भाषा को हम सभी बढ़ावा दें जिससे हम आगे के लिए अपने कठिन रास्ते को आसन कर लें.हिंदी से ही हम सभी की पहचान है.

बुधवार, 7 सितंबर 2011

गलतियों को दोहराना हमारी आदत है ...

क बार फिर हुआ देश की राजधानी पर वार...इतनी बड़ी ,दिल देहला देने वाली घटना पर अब कल से बड़े बड़े नेताओं,मंत्रियों,और सलेब्रेटियों की टिप्पड़ियाँ और शोक सन्देश आना शुरू हो गए हैं और तुरंत लगभग लगभग सभी जगह सुरक्षा के कड़े इन्ज़ाम भी कर दिए गए.किसी ने कहा इस घटना से हमें बहुत दुःख है,किसी ने कहा भगवान सबको दुःख सहन करने की शक्ति दे,किसी ने कहा हमारी संवेदना सभी के साथ है...और किसी ने तो मुआवजे की घोषणा कर डाली..ये तो बात रही बड़े लोगों की पर घाटा होता है आम जनता का.इस पूरे देश की आम जनता क्या चाहती है,क्या सोचती है इससे किसी को कोई मतलब ही नहीं है.ये तो राजधानी की बात है और अभी कुछ ही दिन पहले १३ जुलाई २०११ को देश की आर्थिक राजधानी वालों ने भी इस मंज़र को बहुत करीब से ही देखा था.इन सभी मामलों में जान तो बस हम आम लोगों की ही जाती है...कभी किसी बड़े आदमी को कुछ नहीं होता वो तो बस घटना के बाद  हमेशा अपना दुःख प्रकट करने और संवेदना बाटनें में लग जाता है.सारी मीडिया घटना स्थल के बाद तमाम बड़े लोगों के पास उनका व्यक्तव्य लेने में लग जाती है.इतना कुछ होने के बाद भी कई नेता इस बीच राजनीति और सरकार तमाम दलीलें देना शुरू कर देती है.जहाँ जहाँ भी बम धमाके होते हैं वो कोई छोटी जगह नहीं होती,बड़ी राजधानी,बड़े शहर ही निशाना बनते हैं .जबकि देखा जाये तो वहां हर चीज़ के लिए जागरूकता सबसे ज्यादा है.वहां पर लोग जागरूक है और हर तरह से उन्हें सुरक्षित रखने की कोशिश भी की जाती है.और कई छोटी जगहों पर तो जागरूकता है ही नहीं...उदहारण के तौर पर अगर छोटे शहर या जगह पर किसी को कोई बैग लावारिस हालत में मिलता है तो वो सबसे पहले पुलिस को बताने की बजाय,वो खुद ही उसे लेकर भाग जायेगा .लेकिन बड़े शहरों में ऐसा नहीं है वह लोग तुरंत पुलिस सूचित करेंगे .पर फिर भी घटनाएँ रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं.कुल मिलाकर न तो हम जागरूक हैं और न ही हमारी सरकार.और समय समय पर ऐसे झटके खाना तो हमारी आदत सी हो गयी है ...आये दिन ऐसी घटना होना तो स्वाभाविक है.फिर टेलीविज़न पर ब्रेकिंग न्यूज़ और न्यूज़ पेपर में बड़ी बड़ी हेडलाईन्स  के साथ खबरें परोस दी जाएँगी.हमारे देश के ऊपर भी यही बात सच साबित होती है की अगर हमारी गलती से हमें कोई नुकसान है तो हमें गलती से सीख लेनी चाहिए और अगर हम अपनी गलती से भी सीख नहीं लेते और उस गलती को दोहराते हैं तो वो हमारी आदत बन जाती है.

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

तब जनलोकपाल बिल की कोई ज़रूरत ही न पड़े...

आज कल तो बस सुबह से  शाम  पूरे देशवसियों की निगाहें भ्रष्टाचार के खिलाफ  सबसे  बड़ी जंग लड़ रहे अन्ना हजारे पर ही टिकी है..कुछ सही रास्ता न मिलने पर पूरा देश आज आज़ादी की दूसरी लड़ाई में बढ-चढ़ कर हिस्सा ले रहा है.आज अन्ना ने गाँधी जी के रूप में अपनी  मिसाल पूरे देश को दी है की हर मुद्दा मार-पीट,अस्त्र-शस्त्र से ही नहीं सुलझाया जा सकता बल्कि उसके लिए अहिंसा के पथ  से बढ़कर और कोई रास्ता नहीं है.आज पूरे देश में बड़े से लेकर बच्चे-बच्चे  तक की ज़ुबान पर एक ही नारा है "अन्ना तुम संघर्ष  करो हम तुम्हारे साथ है". बल्कि उस भीड़ में कुछ ऐसे लोग भी है जो जनलोकपाल  के बारे में शायद अच्छे तरीके से न जानते हो पर बात अपने देश की है तो  इस मुहीम  में वह पूरा साथ दे रहे हैं .वाकई  संविधान में लिखी ये लाइन कि भारत एकता और अखंडता का देश है तो ये बिलकुल सही है जो इस मुहीम के द्वारा देखने को बखूबी मिल रहा है.देश भर में टेलीविज़न,समाचार पत्र,रेडियो,विभिन्न तरह की सोशल नेटवर्किंग साईट्स में आज कल बस अन्ना हजारे ही पूरी तरह छाये हैं और लोग  उनका पूरी तरह
से समर्थन कर रहे हैं....
सबसे बड़ा प्रश्न चिन्ह तो ये उठता है कि क्या जनलोकपाल बिल के आ जाने से देश से भ्रष्टाचार ख़तम हो जायेगा?आज इस लड़ाई को आज़ादी की दूसरी लड़ाई की संज्ञा भी दी जा रही है...हमारी संसद या सरकार ने देश भर में कई तरह के कानूनों को लागू किया है पर क्या सभी उस कानून के दायरे में रह कर या कानून के अनुसार काम करते है? नहीं आज सभी अपने कानून के दायरे से ऊपर चल रहे है.मेरे ख्याल से अगर हम आप सभी आपस में ये निर्णय कर ले कि हम खुद में खुद से भ्रष्टाचार रोकेंगे तो किसी तरह के  जनलोकपाल बिल  की कोई ज़रूरत ही न पड़े. और अगर जनलोकपाल बिल आ गया और  किसी दो के बीच आपसी समझौते से काम जुगाड़ से हो गया तो क्या इसके बारे में अन्ना जी को पता चल पायेगा? इसलिए मेरे हिसाब से सबसे पहले हमें खुद को सुधारना होगा कि  न हम भ्रष्टाचार करेंगे न होने देंगे.आज परिवार से ही शुरू हो जाता है भ्रष्टाचार!!! घर में एक लड़के   की  शादी क्या पड़ी लो शुरू हो गया दहेज नामक भ्रष्टाचार ..बस इन्हीं  छोटी-छोटी चीजों को दरकिनार करके हम खुद से भ्रष्टाचार को  पूरे देश से खत्म कर सकते है बस खुद में सुधार करने की ज़रूरत है.और यदि अब  एक इंसान का कदम देश के हित में एक नेक काम के लिए पड़ा है तो हम सभी देश वासियों का फ़र्ज़ है उनकी  इस मुहीम में उनका पूरा समर्थन करे और देश के हित की रक्षा करे .भारतवासी होने के नाते ये हमारा फ़र्ज़ है.
जय हिंद  !!

शनिवार, 30 जुलाई 2011

सबसे पहले अक्षर अ होता है...

सफलता और असफलता के पीछे क्या हमने कभी सोचा कि इन दोनों  में  किसने सबसे बड़ी भूमिका निभायी है.मेरे अनुसार वो है हिंदी के स्वर  का अक्षर अ. इसी ने दोनों के बीच इतना बड़ा अंतर कर दोनों को एक दूसरे से विपरीत कर दिया है.इस को सफलता से हटाने के लिए हम सब कितनी मेहनत करते है.अगर सफलता में अ लग जाये तो असफलता हो जायेगा और हमारा सारा जीवन जीना बेकार हो जायेगा.जब हम शुरू में स्कूल में पढ़ने जाते है तो हिंदी विषय में सबसे पहले हमें स्वर पढाया जाता है जिसमें  सबसे पहले अक्षर होता है वहीँ  से शुरुआत होती है हमारे असल ज़िन्दगी की जो हमें भविष्य के लिए सब सिखाती है.आज ऐसे ही सफलता और असफलता के बारे में सोचते सोचते अचानक इस अक्षर का बहुत बड़ा अंतर समझ में आया.लगा यही तो एक अक्षर है जो अधिकांश अक्षरों के अर्थों का पूरा पूरा मतलब ही बदल देता है जैसे अज्ञान,अलग,अचेत,अपमान आदि.आज हम सभी जो भी  मेहनत  कर रहे वो सफल होने के लिए जनाब यूं कहिये की उस असफलता में से को हटाने के लिए जिससे वो सफल बन जाये.

मंगलवार, 19 जुलाई 2011

हम कर सकते हैं...

जहाँ आज हम बात करते है महिला सशक्तिकरण की वहीँ दूसरी ओर पुरुष के शक के दायरे में आ जाने से आज महिला कहीं भी सुरक्षित नहीं है.इधर कुछ दिनों में घटी घटनाओं ने दिल दहला कर रख दिया है और आज नारी पूरी तरह से  कमज़ोर नज़र आ रही है.वो पत्नी हो या प्रेमिका सभी आज पुरुषों के शक के दायरे में जी रहीं हैं.आज नगर हो या महानगर सभी जगह इस बात की चर्चा ज़ोरों पर है और रही बात शक की तो ये एक ऐसी बीमारी है जिसका कोई इलाज अब तक नहीं है.एक नारी होने के नाते मैं उस दर्द को बखूबी समझ सकती हूँ जिसके पति ने उसे कुल्हाड़ी से काट कर मार डाला होगा..बीते कुछ दिनों पहले जौनपुर में भी एक ऐसी दर्द भरी दास्ताँ सुनने को मिली जिसमें पति द्वारा शक करने के कारण महिला ने ख़ुदकुशी कर ली थी.आज हमारा मीडिया,कई धारावाहिक सभी महिला उत्थान की बातें कर रहे हैं और दूसरी तरफ जाना माना शो इमोशनल अत्याचार ने इस शक के दायरे को और भी हवा दे दी है.उसमें बस यही दिखाया जा रहा है कि किस तरह से लोग अपने उस साथी की विश्वसनीयता का परीक्षण कराते हैं जिस पर उन्हें पिछले कुछ दिनों से सबसे ज्यादा भरोसा होता है,और रही बात उस शो की तो अभी तक शायद उनके यहाँ कोई ऐसा भाग नहीं दिखाया गया जिसमें  वो इंसान अपने को सही साबित कर सके.
इधर कुछ दिनों में दिल्ली,नॉएडा,गाज़ियाबाद,लखीमपुर जैसे बड़े नगरों में घटी कुछ घटनाओं ने मानों औरतों को बहुत ही ज्यादा कमज़ोर कर दिया है.आज माँ बाप अपनी बेटियों को पढ़ने या नौकरी करने के लिए कही भी दूर भेजने से डरते है.अगर यही स्थिति रही तो शायद आने वाला पल बहुत ही बुरा होगा....शायद मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी एक दिन ये समय आएगा जब पूरे देश की कमान सम्हालने वाली,अपने राज्य की मुख्यमंत्री,दिल्ली की मुख्यमंत्री,लोकसभा अध्यक्ष सभी एक महिला हैं और इनके होते हुए भी आज महिला अपने ही देश,राज्य,शहर में पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं.हर जगह तो छोड़िये खुद अपने परिवार में भी औरत आज सुरक्षित नहीं हैं.
हर क्षेत्र में आगे होने के बावजूद भी आज महिला को पुरुष के वर्चस्व के आगे झुकना पड़ता है.
इसके लिए मेरे हिसाब से खुद में महिला को मजबूत और समझदार होना पड़ेगा और सोचना होगा कि हम कर सकते हैं,तभी शायद हम आगे एक अच्छा,सुनहरा भविष्य देख पाएंगे.

शनिवार, 16 जुलाई 2011

कहते हैं वो स्वर्गवासी हो गया...

आज ऐसे ही ज़िन्दगी और मौत के बारे में सोचते सोचते एक शब्द पर जाकर दिमाग थोड़ा सा रूक गया वो शब्द मिला स्वर्गवासी.जिसे हम सभी आमतौर पर तब प्रयोग करते है जब कोई इन्सान मर जाता है तो कहते हैं वो स्वर्गवासी हो गया.फिलहाल ये शब्द अपनी जगह कहीं से भी गलत नहीं है...पर क्या हमने कभी सोचा कि जिस चाहरदीवारी से बनी छत में हम रहते हैं उसे भी तो हम स्वर्ग ही कहते हैं और उस छत के नीचे रहने से हम वहां के वासी हुए...और अभी मन में प्रशन चल ही रहा था कि घर पर एक सज्जन आये हुए थे और अपने घर के बारे में बातें कर रहे थे तभी उनके मुंह से निकल पड़ा कि बेटा मेरा घर तो बिलकुल स्वर्ग जैसा है तो मैंने कहा अंकल तब तो आप स्वर्गवासी हुए बस इसी बात पर भड़क गए बोले तुम क्या कह रही हो ऐसा नहीं कहते...तो मैंने उन्हें उसके शब्द के अर्थों से समझाया तो हँसने लगे बोले हाँ सही है...ऐसे ही कई ऐसे शब्द हैं जो हम जाने अनजाने में प्रयोग कर देते है पर उसका सही अर्थ नहीं जान पाते,वो तो बड़े बड़े विद्वान ही समझ पाएंगे.

शनिवार, 18 जून 2011

क्या लायें है मेरे लिए....?

ज़िन्दगी की शुरुआत तो होती है उन दो रिश्तों से जिनसे हम सब कुछ सीखते हैं,वो हैं हमारे माता और पिता.धरती पर आने के बाद जब हमारी आंखे खुलती है तो हमारे सामने यही दो शख्स होते हैं जो हमें जीने की राह सिखाते हैं.यही वो दो हैं जो हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं.
अभी हाल में ही कुछ दिनों पहले मदर्स डे बीता है.माँ शब्द का ज़िक्र हर जगह कविता,कहानी,आदि में भरपूर तरीके से किया जाता रहा है और मदर्स डे पर मैंने अपनी माँ पर कुछ लाइन लिखी थी...उसी तरह आज फादर्स डे पर मैं कुछ बातें अपने पापा के बारे में लिखना चाहती हूँ.शायद हर किसी को अपने माता पिता सबसे ज्यादा अच्छे लगते है और उन्हें वो दुनिया से ज्यादा प्यारे भी होते हैं. आज मै बहुत खुश हूँ, जो मुझे ऐसे पापा मिले.मुझे बहुत प्यार और मेरी सबसे ज्यादा देखभाल करने वाले हैं मेरे पापा.मै आपको ये बता दूं की मेरे पापा बिलकुल एक नारियल की तरह हैं जो ऊपर से बिलकुल कठोर और अन्दर से बिलकुल नरम होता है.उनमे वो हर बात है जो एक अच्छे इंसान में होनी चाहिए.मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है जैसे साहस,आत्मसम्मान,निडरता आदि.आज मैं अपना कोई भी फैसला बिना उनकी मर्ज़ी के नहीं लेती.मै अपने पापा से बहुत प्यार करती हूँ.बचपन से आज भी जब पापा बाहर से आते हैं तो मेरा सबसे पहला प्रश्न होता है पापा क्या लायें है मेरे लिए....?अगर एक लड़की के मनोभाव से देखा जाये तो वो हमेशा अपने होने वाले जीवनसाथी में अपने पिता जैसी ही परछाईं देखना चाहती है.वो हमेशा चाहती है की जैसे उसके पिता ने उसे सारी बुराईओं से दूर रखा,इतनी सुरक्षा प्रदान की उसी तरह वो भी उसके साथ वैसे ही रहे.एक परिवार में पिता अपनी बेटी को सबसे ज्यादा प्यार करता है शायद उसकी बेटी दूसरे घर की अमानत जो होती है.आज मुझे अपने पिता पर पूरा गर्व है और सबसे ज्यादा भरोसा है.पिता का साया तो सामान्य तौर पर एक छत की तरह होता है.ये साया बच्चों के साथ तब तक रहता है जब तक बच्चा अपनी ज़िन्दगी में कुछ बन न जाये.पिता अपना बच्चों की प्रेरणा ही नहीं बल्कि एक बहुत बड़ी शक्ति भी होता है.इनके अनुशासन में ही पूरा घर रहता है.कहते हैं ना की भगवान् से बड़ा दर्ज़ा होता है हमारे माता पिता का,तो मेरी यही दुआ है की उनकी जोड़ी हमेशा ऐसे ही सलामत रहे और मेरे ऊपर उनका साया हमेशा बना रहे.

शुक्रवार, 17 जून 2011

यही ज़िन्दगी की रीति है.

रिश्ते बनना बिगड़ना तो ज़िन्दगी की निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है.हम अपनी पूरी ज़िन्दगी बहुत सारे रिश्ते बनाते हैं और बहुत सारे रिश्ते हमसे जाने अनजाने में छूट जाते हैं.क्या ये सही है?इस बात से बिलकुल इनकार नहीं किया जा सकता कि ये सिर्फ प्रक्रिया ही नहीं बल्कि एक सामाजिक बंधन के रूप में अब देखा जा रहा है.आज कहने को सारे रिश्ते एक मतलबी नामक चादर से ढके हुए हैं और सभी उसी में सो रहे हैं.आज सारा रिश्ता पूरी तरह मतलबी रस्सी से बंधा हुआ है.जब तक कोई मतलब है तब तक वो अपनों की तरह व्यवहार करते हैं और वही मकसद पूरा होने के बाद बिलकुल बदल जातें हैं.जगह जगह रिश्तों से हमें धोखे भी मिलते हैं.पर कुछ हो न हो हमें ऐसे रिश्तों से बहुत बड़ी सीख भी मिलती है.ज़िन्दगी के इस रंग में ऐसे रिश्ते आपको बहुत ज्यादा समझ देते हैं.हर किसी के ज़िन्दगी में ऐसे रिश्ते होते हैं ये सच हैं! इसी में कुछ लोग उसे झेल जाते हैं और कुछ ऐसे रिश्तों के पीछे अपनी पूरी ज़िन्दगी बर्बाद कर लेते हैं.ऐसे रिश्तों पर से पूरी तरह हमारा विश्वास भी हट जाता है.बड़ा दुःख होता हैं न जब कोई अपना ऐसा करता है कितना विश्वास होता है उस पर और वही अपना जिसे हम अपना सब कुछ समझ लेते हैं वो हमें धोखा दे देता है.आज समाज कितना बदल गया है. पहले की अपेक्षा अब ज्यादा मतलबी हो गयी है पूरी दुनिया.परिवार से ही शुरू करें तो आज बेटा माँ बाप से,पति पत्नी से,भाई बहन से,यहाँ तक दोस्त दोस्त से सभी इसी तरह मतलब से जुड़े हुए  हैं,फिर और रिश्तों की आगे बात ही क्या की जाये?यही मतलबी रिश्ते एक सबक और जीने का एक नया सलीका सिखाते हैं.बस शायद अब यही ज़िन्दगी की रीति है.

शुक्रवार, 3 जून 2011

'करने से होगा'

भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ी मुहीम
अन्ना हजारे जी के नक़्शे कदम पर चल रहे इस देश के जाने माने योग गुरु बाबा रामदेव अब कल से रामलीला ग्राऊंड नयी दिल्ली में अनशन पर बैठने जा रहे हैं ...देखने वाली बात तो ये होगी कि सफलता कहाँ तक मिलती है? हम सभी देशवासी को इस बात का बेसब्री से इंतज़ार रहेगा. जगह जगह न्यूज़ चैनलों और समाचार पत्र में इस समय की सबसे बड़ी खबर के रूप में चर्चा में हैं हमारे बाबा रामदेव जी,कारण हैं इस देश से भ्रष्टाचार का खात्मा करना.बैठेंगे वो अनशन पर कल से पर, दो दिन पहले से ही मीडिया में उनकी चर्चा ज़ोरों पर हैं.कहने को तो ये एक अनशन हैं पर पूरी तरह से तैयारियां ज़ोरों शोरों से की गयी है.जगह जगह इतनी कड़ी सुरक्षा का प्रबंध किया गया है,पानी की त्राहि त्राहि आज पूरे देश में मची है इसको देखते हुए पानी का पूरा बंदोबस्त किया गया है,लगभग वहां पर नलों कि संख्या १००० से ज्यादा बताई जा रही है .महिलाओं के लिए विशेष सुविधा है.बैठने और विश्राम करने के लिए आरामगाह भी बने है.देश के कोने कोने से उनके समर्थक वहां पर पहुँच चुके है,अनशन से पहले पूरे विधि विधान से यज्ञ आदि भी कराये जा रहे हैं.
क्या आप सभी को लगता है कि देश की इतनी बड़ी मुहीम लेकर अगर एक इन्सान आगे आया है तो उसे सफलता मिलेगी?क्या पहले भ्रष्टाचार नहीं था ?या बाबा रामदेव जैसा कोई नहीं था ?
बात कुछ अटपटी सी है.यहाँ तो बस देर कदम बढ़ाने की है.ये पूरी लड़ाई सिर्फ एक देश की नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक की है जो इस देश में रहता है.अरे!!! अनशन तो बहुत ही दूर कि बात है पहले तो हमें भ्रष्टाचार को खतम करने के लिए खुद अपने और अपने परिवार से शुरुआत करनी होगी जिसमें सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार है.आज देश,समाज क्या हम अपने परिवार में ही निडर,विश्वास,और साहस के साथ नहीं रह सकते.देश,दुनिया में  घट रहीं नित निरंतर छोटी बड़ी घटनाएं इस बात का सबसे बड़ा सुबूत हैं कि भ्रष्टाचार किस पायदान पर है.बाबा के इस कदम को लोगों ने कई तरह का नाम दिया है जैसे ...किसी ने कहा बाबा मीडिया में रहना पसंद करते हैं,किसी ने कहा बाबा हाई लाइट होने के लिए इतना कुछ कर रहे,किसी ने कहा कि आने वाले २०१२ के चुनाव में बाबा अपना स्थान बनाना चाहते है इसलिए वो ऐसा कर रहे हैं.बात चाहे जो हो वो तो बाबा जाने पर यहाँ बात पूरी तरह से जनहित से जुड़ी हुई है.बाबा का कहा जाने वाला सबसे प्रसिद्ध वाक्य कि 'करने से होगा' पर आज बाबा ने अमल किया है और इतना बड़ा कदम उठाया है.जो वाकई काबिले तारीफ है और हम सभी देशवासियों का कर्त्तव्य है कि इस मुहीम में उनका भरपूर साथ दे.

रविवार, 29 मई 2011

"रिश्ता वही सोच नयी"

जून का महीना आने वाला है और,आने वाला है बच्चो के लिए पूरी तरह खेलने,कूदने,मौज,मस्ती वाला दिन.याद आता है वो अपनी बीती छुट्टियों वाला दिन जब छुटियाँ होने पर मम्मी कहती थी कि अब तो सब नानी जी के घर घूमने चलेंगे और हम सभी घूमने भी जाते थे.अब तो जैसे जैसे दिन बीतता है और उम्र बढ़ने के साथ साथ जिम्मेदारियां इतनी हो जाती हैं कि वो छुट्टियाँ कब आती हैं और कब चली जाती हैं पता ही नहीं चलता,अब तो फ़िलहाल छुट्टियों का पूरा पैमाना ही बदल गया है.अब के बच्चे तो इतने हाईटेक हो गए है कि कंप्यूटर और टेलीविजन के दौर में इनके हाथ में ना तो कॉमिक्स दिखती है ना ही दिखता है गुल्ली डंडा.
आज कल के बच्चों में वो सारी चीज़े तो खो सी गयी है.यहाँ तो आजकल बस विडियो गेम,लैपटॉप,टीवी से ही फुर्सत ही नहीं मिलती की  दूसरी चीज़े भी देखी और खेली जाये?
पहले तो नंदन,चम्पक,कहानियों की किताबों से टाइम पास होता था साथ ही उनसे कोई न कोई सीख भी मिलती थी , पर वो अब नहीं देखने को मिलता.अब गली में वो चोर-सिपाही,आइस-पाईस,खो-खो,कबड्डी,दौड़ना,भागना सब पुरानी बातें हो गयी.बच्चे खेल खेल में ही ज़िन्दगी के बहुत  पाठ पढ़ लेते थे.  अब तो कंप्यूटर के ऑनलाइन गेम से ही टाइम नहीं मिलता.पहले तो दादी,नानी के किस्से कहानियों से रात बीत जाया करती थी पर अब तो बात हो गयी है कि "रिश्ता वही सोच नयी".
आज वैश्वीकरण के चलते दुनियां इतनी सिमट गयी है कि आज बच्चें जो मन के सच्चे होते है अपनी ही परिधि में पूरी तरह से कैद हो गए हैं.प्रतियोगिता के इस दौर में उनके दिमाग में चीज़े इतनी घर कर जा रही हैं कि वो आगे पीछे कुछ सोच नहीं पा रहे है.आज छुट्टियाँ भी हो रही हैं तो इस समय विभिन्न तरह के कोर्सेस आ गए हैं बच्चे उसी में उलझे हुए हैं और सोचते हैं कही हम उस आगे जाने वाली दौड़ में पीछे न छूट जाये और उसके लिए तरह तरह कि क्रियाएं सीख रहे हैं.आज गर्मी की छुट्टी के नाम पर बच्चे कई कोर्सेस कर रहे हैं.
पर मस्ती तो सिर्फ छुट्टियों के नाम में ही हैं...तब क्या धूप क्या छांव?सिर्फ घर से बाहर भागो और दोस्तों के साथ मौज मस्ती करो.

शुक्रवार, 27 मई 2011

यहाँ यादें बसती हैं.....



हर चीज़ का अपना एक समय होता जिसको एक दिन पूरा होना ही होना होता है ...वैसे ही आज मेरा भी हॉस्टल का दो साल पूरा हो गया.आज यहाँ मेरा आखिरी दिन है.यहाँ पर बिताया हुआ हर  पल बहुत सारी यादें छोड़ गया है हर उस बच्चे के लिए जो हॉस्टल में रहते है...यहाँ आकर बिलकुल भी ऐसा नहीं महसूस होता कि आप अपने घर से ज़रा सा भी दूर हैं.अलग अलग जगहों  से आने वाली लड़कियां  एक साथ मिलती हैं,तरह तरह की बातें होती है,लडाई,झगडा,रूठना,मनाना,कितना अच्छा लगता है....
बिताया वो हर बुरा और अच्छा पल हमेशा याद रहेगा.घर कि याद आने पर जब कोई रोता था तो सब उसे देख देख के रोने लगते थे और फिर कोई एक उठ के कहता था ऐ चुप रहो हम यहाँ पढने आये हैं कोई रोने नहीं.बहुत अच्छे पल बीते हैं हम सभी के यहाँ पर.
मै हमेशा सोचती थी कि कब यहाँ से छुट्टी मिलेगी कब मै अपने घर जाउंगी और वाकई आज जब यहाँ से जाने कि बारी आई तो बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा है यहाँ से जाना.कितनी यादें जुडी है हम सब कि यहाँ से.बात बात पर पार्टी लेते थे हम बस एक बहाना चाहिए था हम सभी को मस्ती करने का...ये दिन तो वाकई वापस नहीं आएगा पर बस याद आयेंगे वो पल जो बीत गए यहाँ पर.हर साल इतनी सारी नयी नयी लडकियां आती है.लोग मिलते हैं,पढ़ाई,लिखाई,मस्ती और फिर वापस जाना.ये सिलसिला तो इस होस्टल में न जाने कितने वर्षों से चला आ रहा होगा.  
वाकई आज सबसे अलग होना मुझे बहुत बुरा लग रहा है.इतने दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला. यहाँ का मेस, दोस्तों का कमरा, वार्डन की बातें रह रह के दिमाग में गम रही हैं. बहुत सारी दोस्तें परीक्षा  खत्म होने के कारण अपने अपने घर चली गयी. जिनसे बहुत निकटता नहीं भी थी उनसे भी बिछुड़ने का गम आज हुआ. बहुत याद आयेगी हॉस्टल की यहाँ के ढेर सारे  दोस्तों की.

शनिवार, 21 मई 2011

आशाएं आशाएं आशाएं ....

शुक्रवार, २५ फरवरी २०११ को मैंने अपना ब्लॉग बनाया था और इस पर पहली पोस्ट  

माता पिता और उनकी आशाएं थी. माँ बाप का कर्ज पुरे जीवन में उनके लिए कुछ भी करके उतरा नहीं जासकता है.यह  पोस्ट 21 मई २०११ को बी पी एन  न्यूज़ पेपर में आशाएं आशाएं आशाएं .... शीर्षक में प्रकाशित हुई है. 

शुक्रवार, 13 मई 2011

अंकित नाम था प्यार से बुलाते थे सभी उसे लिटिल ......

न जाने हर दिन क्यों दुबारा लौट कर अपना एक एक साल पूरा
करता जाता  है.........और उस
बीते हुए लम्हों  कि  सारी यादों को दोहरा देता है..यादों को दोहराने के साथ साथ आँखों में कभी ख़ुशी तो कभी ग़म छोड़ जाता है..तभी तो आज १३ मई है और आज का दिन शायद मेरे और मेरे परिवार वालो के लिए बहुत ही
--------------- दिन होता है  ...
कहते हैं न कि तकदीर से ज्यादा कभी कुछ हासिल नहीं होता हमेशा उतना ही मिलता है,जितना मिलना लिखा होता है.ऐसा ही कुछ वाकया हमारे साथ भी १३ मई १९९८ को हुआ था.जब मेरा बड़ा भाई हमारे परिवार को छोड़ कर इस दुनिया से अलविदा कह गया.उसका नाम था अंकित पर प्यार से सभी उसे लिटिल बुलाते थे...घर का बड़ा बेटा जो था,सभी उसे बहुत प्यार करते थे.नाना, नानी, दादा, दादी सभी का उससे बड़ा लगाव था.माँ और पापा का तो दुलारा था.बहुत ही नटखट था हमेशा बदमाशी करना उसकी फितरत थी....पर हम सभी को वो छोड़ कर ऐसे चला जायेगा एक दिन कभी सोचा न था.
कहते है न अच्छे इन्सान ज्यादा दिन इस दुनिया में नहीं रहते.बस भगवन को भी यही मंजूर था और १३ मई १९९८ दिन बुधवार को एक ट्रेन दुर्घटना में वो हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया...जिसका दुख आज तक हमारे परिवार वालो को सताता है और शायद सताता रहेगा क्यूंकि ऐसे ज़ख़्म ज़िन्दगी में कभी नहीं भरते...और रह जाती हैं तो सिर्फ उनकी यादें.आज १३ मई का बीता वो दिन अपने १३ साल पूरे कर चुका है.
आज जैसे ही सुबह आँख खुली तो बस वही सारी चीज़े बस मन को थोड़ा परेशान कर रही है...पर समय बहुत ही बलवान होता है ये सारी परिस्थितियों को नियंत्रित कर देता है.आज से १३ साल पहले तो मै काफी छोटी थी फिर भी मुझे पूरी तरह से वो मंज़र याद है.मेरे भाई के जाने के बाद बहुत संभाला मैंने खुद को और अपने परिवार वालों को क्यूंकि उसके जाने के बाद घर में मैं ही बड़ी हूँ ....
इसी के साथ मै भगवान् से ये पूछना चाहती हूँ कि क्या जो हुआ वो सही था???
फ़िलहाल हम सभी भगवान् से प्रार्थना करते हैं कि वो जहाँ भी रहे भगवान् उसकी
आत्मा को शांति  दे ..

शनिवार, 7 मई 2011

माँ तो माँ ही होती है....

बड़ी अजीब बात है जब कोई विशेष दिन आने वाला होता है तो सभी जगह उसकी चर्चाएं ज़ोरों पर होने लगती हैं...उसके बारे में तरह तरह की जानकारियां भी मिलने लगती हैं हर जगह बस उस विशेष दिन की चर्चा होने लगती हैं....अब मदर्स डे को ही ले,कल ८ मई है और कल है मदर्स डे ..पिछले कई दिनों से इसकी चर्चा ज़ोरों शोरो से हो रही हैं.
जैसा मैंने फेस बुक पर भी लिखा है कि मेरी माँ मेरे लिए मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी प्रेरणा है खैर माँ तो माँ ही होती है.उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती है न ही उसका स्थान कोई और ले सकता है .सभी को अपनी माँ सबसे प्यारी होती है वैसे मेरी माँ भी मुझे सबसे प्यारी है.शायद मैंने उन्हीं से ज़िन्दगी को असल मायनों में जीना सीखा है.कदम कदम पर माँ ने मुझे सम्हाला है.आज मै जैसी भी हूँ जो भी हूँ उसकी वजह मेरी माँ है.माँ शब्द खुद में जितना प्यारा है और उतनी ही प्यारी होती है माँ.
माँ ही होती है जो हमें खाना,पीना,उठना,बैठना,सिखाती है.समाज में अच्छाई,बुराई की पहचान करना सिखाती है.बच्चे चाहे जितने भी बड़े क्यों न हो जाएँ वो अपनी माँ के लिए हमेशा बच्चे ही होते हैं.माँ को हमेशा अपने बच्चों की फ़िक्र सबसे पहले और सबसे ज्यादा होती है,ऐसी ही मेरी भी माँ है.मै कोई भी छोटा या बड़ा काम अपनी माँ से ही पूछ कर करती हूँ.वो मुझे बहुत प्यार करती है,मेरी हर ज़रूरतों को पूरा करती है.मेरी माँ मेरा बहुत ख्याल रखती है.
भगवान्  करे दुनिया में सबको मेरी माँ जैसी ही माँ मिले.माँ मेरी सिर्फ माँ ही नहीं बल्कि मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी है जिससे मै अपनी सारी बातें भी शेयर करती हूँ.मै दुनिया में अपनी माँ को सबसे ज्यादा प्यार करती हूँ...........हे माँ !अगले जन्म में भी तुम मेरी ही माँ बनकर मेरे पास आना.
दुनिया की सभी माँ को मेरा सलाम.!!!!

शुक्रवार, 6 मई 2011

ब्लॉग पोस्ट समाचार पत्र में..

BPN TIMES (Daily  News Paper) के ग्वालियर, आगरा, झांसी, धौलपुर, भोपाल, दिल्ली तथा इन्दौर संस्करण में प्रकाशित 

सोमवार, 2 मई 2011

मेरे ब्लॉग की पोस्ट BPN TIMES (Daily News Paper) में प्रकाशित

 
मेरे ब्लॉग की पोस्ट  BPN TIMES (Daily  News Paper) के ग्वालियर, आगरा, झांसी, धौलपुर, भोपाल, दिल्ली तथा इन्दौर संस्करण में प्रकाशित हुआ है.
 



शनिवार, 30 अप्रैल 2011

पद नही इन्सान बडा होता है.........

माननीय कुलपति प्रो सुन्दर लाल
मीडिया कि पढ़ाई करते हुए मैंने सीखा कि सभी से अच्छे सम्बन्ध बनाने चाहिए .आप किसी के बारे में बिना जाने उसका मूल्यांकन नहीं कर सकते.आपकी परिकल्पना कुछ अलग हो सकती है और वो बदलती तब है जब आप उससे मुखातिब होते हैं और बातचीत करते हैं....आज कुछ ऐसा ही मुझे भी महसूस हुआ जब मैं अपने विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो सुन्दर लाल जी से मिली.वो बहुत ही सरल,सुशील,और सौम्य विचारों के लगे.आज मुझे उनसे मिलकर बहुत ही ज्यादा ख़ुशी हुई.हुआ यूँ कि आज एक कार्यक्रम के सिलसिले में मुझे उनका इंटरव्यू लेना था और जब मैं गयी तो शायद मेरे मन में कई तरह के प्रश्न थे कि पता नहीं कुलपति जी  कैसे है?किस विचारो के हैं?पर सच में वो बहुत ही अच्छे स्वभाव के हैं उन्होंने बहुत अच्छे से उस इंटरव्यू को सफल बनाया.मैं उनका बहुत बहुत धन्यवाद देती हूँ और गर्व करती हूँ कि हमारे विश्वविद्यालय को इतने अच्छे कुलपति मिले हैं.हमारे कुलपति जी बहुत मायने में अलग हैं और वो आज भी विश्वविद्यालय में कुलपति पद पर होने के बावजूद् नियमित रूप से अध्यापन कार्य करते हैं। आप को ये बता दू कि बाद में उन्होने मुझे बुलाकर मुझसे बाते भी की जो मुझे बहुत अच्छा लगा.शायद मिलने से पहले उनके लिए मेरी धारणा कुछ और थी पर कल मुलाकात के बाद लगा कि इन्सान जब बड़े और ऊँचे पद पर होता है तो उसके पद से ज़्यादा वो इन्सान बडा और मधुर स्वभाव का होता है.उसने मिलना और बाते करना मेरे लिये बहुत ही गर्व की बात है।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

समय कभी वापस नहीं आता ये वाकई मैंने महसूस किया

कहते है न समय कभी वापस नहीं आता ये वाकई मैंने आज महसूस किया कि बीता दिन कभी लौटकर नहीं आता.......पढाई लिखाई के इस अंग्रेजी दौर में ये तो चलन है कि अप्रैल माह आते आते स्कूलों में एडमिशन का दौर चलने लगता है जहाँ बच्चों कि लालसा उनकी नयी कॉपी,किताब,बैग,पेंसिल,रबर,नयी ड्रेस होती है वहीँ सबसे बड़ी दिक्कत माता पिता की जेब पर आ जाती है. लेकिन बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए उन्हें सब करना ही होता है.आज ही मैंने सुबह न्यूज़पेपर में पढ़ा कि कॉपी किताब न मिलने के कारण बहुत ही अभिभावक परेशान भी है मुझे पढ़ के ये दुःख भी हुआ !!!फ़िलहाल ये तो बात रही उनकी परेशानियों की पर यहाँ तो बच्चों की उत्सुकता की है.आज छोटे भाई की नयी किताब,कॉपी,बैग आने से उसकी तो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था मुझे अच्छा तो लगा पर सच में गुज़रा वो अपना दिन मुझे याद आ गया कि मै भी कभी ऐसी थी और मै भी बहुत खुश होती थी कि कल से स्कूल,नए दोस्त,नयी सीट,सभी नया नया होगा.बचपन के वो दिन कब गुज़र जाते है पता ही नहीं चलता और तब जल्दी से बड़े होने कि लालसा जो रहती है पर अब जब बड़े हो जाओ वही पुराने अच्छे पल वो दोस्त,स्कूल बहुत याद आते हैं.वास्तव में वो गुज़रे लम्हे वापस नहीं आते और अपनी मीठी मीठी यादें छोड़ जाते है.

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती...



आइये हम सब मिल कर भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आये.अन्ना ने तो दिखा दिया कि आज भी अगर हिम्मत हो तो बड़े बडों को झुकाया जा सकता हैं.
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हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती

लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती



हिम्मत करने वालों की हार नहीं होती।



नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है,



चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है,



मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,



चढ़कर गिरना,गिरकर चढ़ना न अखरता है,



आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती ,


कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।
                   
                          -हरिवंशराय बच्चन



मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

अधूरे ख्वाब ......

जिसको  मैंने अपना समझा वो तो मेरा कभी था ही नहीं,
बस ख्वाब था,
एक छोटा सा जो मेरे साथ अभी भी है
उसकी  परछाई को भी मैंने अपना समझा था,
शायद वो ख्वाब सिर्फ ख्वाब ही था
जो आज भी अधूरा अभी भी है.
क्रमशः ..........

शुक्रवार, 25 मार्च 2011

विचारों का असंतुलन

 असंतुलित विचार 
हम सभी मनुष्य योनि में जन्म लिए है और हमसे सम्बन्धित हमारे चारों तरफ कई तरह के विषय हैं.हर विषय के साथ हमारे साथ सबसे बड़ा विषय मनोविज्ञान है जो मनुष्य पर सबसे ज्यादा हावी है.इसी के चलते हमारे विचार भी अलग अलग है.हम सभी एक दूसरे से अलग विचार,अलग दृष्टिकोण,अलग भावनाएं और अलग सोच भी रखते है.मै इस पूरे समाज कि बात क्या करू? अगर उदाहरण लें तो सबसे पहले अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचें  जो हमारे सबसे ज्यादा नजदीक है.हम सभी एक दूसरे से अलग सोच रखते है.किसी के विचार,सोच एक दूसरे से नहीं मिलते .सबकी पसंद अलग होती हैं,सब अलग तरह से सोचते हैं.हम सभी किसी को अपनी सोच के अनुरूप बदल नहीं पाते बल्कि उनके साथ सामंजस्य बनाते हैं क्यूंकि रहना हमें उन्हीं के साथ है.हम उन्हीं की सोच के मुताबिक काम करते हैं.परिवार में माँ-बाप भाई-बहन सभी के विचारों में कोई संतुलन नहीं देखने को मिलता.एक बच्चे के बारे में माँ कुछ सोचती है वहीँ पिता कुछ अलग सोचता है और कभी कभी इसी सोच के चलते बच्चे दिग्भ्रमित हो जाते हैं.परिवार में किसी सामूहिक निर्णय पर भी सभी की पसंद भी अलग होती है.कभी कभी तो बिलकुल असमंजस की स्थिति सी दिखाई पड़ती है.
ये बिलकुल एक साधारण सी बात है जिस पर जल्दी निगाह नहीं जाती.

बुधवार, 16 मार्च 2011

मेरा सबसे सच्चा साथी .....

आज मैंने अपने सबसे अच्छे और सच्चे दोस्तों को खोजना शुरू किया तो लगा कि जब मैं किसी को याद करती हूँ तभी वो दोस्त मुझे याद करते है जैसा की लोग कहते है कि ताली दोनों हाथों से बजती है, वही मैंने सोचा तो मुझे लगा कि हाँ आज इतनी भागती दौड़ती ज़िन्दगी में किसी को कहाँ फुर्सत है कि वो किसी को याद करे?अचानक से कुछ ख्याल आया और आँखों में आंसू आ गए  तो मुझे लगा शायद आपके  सबसे अच्छा साथी तो आपके आंसू हैं जो हर पल हर घड़ी सिर्फ आपके साथ ही होते हैं,वो चाहे ख़ुशी हो या गम वो हमेशा आँखों से सारी कहानी को बयां कर देते हैं.बहुत ख़ुशी और गहरे दुःख में ये आंसू ही आपकी मदद करते है.सभी ने कहा है कि रो लेने से दिल हल्का हो जाता है और ऐसा सच में है.आज हम सभी किसी को अपना नहीं कह सकते क्यूंकि मेरे हिसाब से जिस पर आप सबसे ज्यादा विश्वास करते है वो ही शख्स आपको धोखा दे जाता है,और दोस्ती में भी शायद ऐसा ही होता है दोस्त तो बहुत मुश्किल से मिलते है,लिस्ट तो बहुत लम्बी होती है पर उसमें से हमें खुद चुनना पड़ता है कि कौन अपना है कौन पराया है,और जब कोई दूर जाता है तब शायद ये आंसू ही होते हैं जो हमारी सबसे अच्छी मदद करते हैं.बहुत दिन बाद किसी से मिलने पर भी ये आंसू ख़ुशी के रूप में हमारी आँखों से निकल ही जाते हैं,तो मुझे लगा कि इससे अच्छा दोस्त और कोई नहीं जब वही दोस्त जिन्हें याद करने पर वो मुझे याद करते है और जब वो धोखा दे तो भी तो आंसू ही आते हैं.आपके मन का न हो या कोई बात बुरी लग जाये तो बस आंसू ही सबसे बड़ा सहारा होते हैं.
धन्यवाद् .

मंगलवार, 15 मार्च 2011

वीर बहादुर सिंह पूर्वाचल विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग द्वारा आम बजट पर परिचर्चा का आयोजन

१४-०३-२०११ को परिचर्चा में बाये से दायें डॉ मानस पाण्डेय, डॉ पुरोहित ,डॉ एस के सिन्हा, डॉ मनोज मिश्र,डॉ आशुतोष सिंह, सञ्चालन धर्मेन्द्र सिंह और मैंने किया .




अमर उजाला समाचारपत्र

शुक्रवार, 11 मार्च 2011

सपना!!!!!!! ज़िन्दगी में कुछ करने का.....

आज एक सपना देखा तो बहुत अच्छा लगा पर अक्सर लोगों  से सुना है कि सपने कभी पूरे नहीं होते.पर क्या सपने देखना गलत है?जैसे जैसे ज़िन्दगी आगे बढती है वैसे वैसे हमारे सपने भी तो आगे बढ़ते है.हम सभी कुछ करने से पहले ज़िन्दगी में कुछ बनने से पहले उससे जुड़े सपने देखते है,भले वहां तक पहुचें या न पहुचें ......सपनों की दुनिया में खोना कितना अच्छा सा लगता है कितना अच्छा वो अहसास होता है जब हम सपना देख रहे होते हैं.खैर ये तो बात हुई सपने देखने की  पर अब बात यहाँ ये है कि सपना हम दिन में देखें या रात में?नींद में देखें या खुली आँखों से?ये कहना तो बड़ा मुश्किल है कि हम सपना देखें तो कब देखें?
कहते है बड़ा सोचोगे तो बड़े आदमी बनोगे..मैंने भी सोचा है कुछ नया और बड़ा बनने का.सपने तो मैंने भी बहुत देखे है अब बस उसके पूरा होने का इंतजार है...ज़िन्दगी में इतनी स्ट्रगल है कहते है मेहनत करो सब कुछ हासिल होगा बस उसी डगर पर हूँ,और सपने देखती रहती हूँ.आखिर में मेरे सपनों से मेरे माता पिता मेरे  गुरुजन सभी  के सपने जुड़े हुए है उन्हें पूरा भी तो करना है.

रविवार, 27 फ़रवरी 2011

आज और लड़कियां

जैसा कि कहा गया है कि एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है तो,महिलाएं जो आज देश कि ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की सबसे बड़ी शक्ति है.आज जो ये देश इतना प्रगति कर रहा है उसमे सबसे बड़ा योगदान हमारे देश की महिलाओं का ही है.हमने कभी ये सोचा भी नहीं था कि एक दिन ऐसा आयेगा जब देश की प्रधान मंत्री से लेकर राज्य की  मुख्यमंत्री तक की कमान एक महिला ही सम्हालेगी.आज महिला किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं है पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाने वाले वाक्य को इन्होनें सच साबित कर दिया है.देश कि प्रगति के साथ माता पिता कि सोच के बदलते पैमाने ने लडकियों को बोझ न समझने वाला बना दिया है.यदि मै बात करू कुछ सफल महिलाओं  कि तो उधारण के लिए हम इंदिरा गाँधी,सरोजिनी नायडू,रानी लक्ष्मीबाई, किरण बेदी,कल्पना चावला,आदि का नाम ले सकते है.वर्त्तमान समय में सबसे जीता जागता उधारण हम सोनिया गाँधी और प्रतिभा पाटिल से ले सकते है.कुछ प्रतिशत लोगो को छोड़ दिया जाये जहाँ देश के कुछ राज्यों में शिक्षा का निम्न स्तर,भ्रूण हत्या,बाल विवाह जैसी चीज़े अभी है वरना महिलाओं ने हर जगह अपना भरपूर समर्थन दिया है.अगर हम भारत के विकास की  बात करेंगे तो शायद वहां  महिलाओं का योगदान भी ज़रूरी होगा बिना उसके विकास का पैमाना गलत है.आज लड़कियां माता पिता के लिए बोझ नहीं है बल्कि वो एक लड़के होने का पूरा फ़र्ज़ अदा कर रही है.आज सरकार कि तरफ से मुहैया करायी जा रही  विभिन्न तरह की योजनाओं ने लडकियों की शिक्षा को बहुत आगे बढाया है.शिक्षा,खेल,राजनीति,मीडिया आदि विभिन्न क्षेत्रों में लड़कियों ने अपनी एक अलग पहचान बनायीं है.मीडिया से जुड़े होने के कारण मैंने बहुत अच्छे से महसूस किया कि लड़कियां वाकई में बहुत कुछ कर सकती है.परिवार की देखरेख से लेकर तकनीकी तक के क्षेत्र में उन्होंने हर चीज़ को संभव किया है.आज हर लड़की के पास पूरा अधिकार है कि वो अपने लिए वो रास्ता चुने जो उसे पसंद हो.कॉलेज और विश्व विद्यालयों में पढ़ रही लडकियों को देख कर लगता है कि आज माता पिता कितने जागरूक है अपनी लड़कियों को शिक्षित करने के लिए.छोटे छोटे शहरों और गाँव में रह रही लड़कियों को तो कुछ पाबंदियों का सामना करना पड़ता है पर बड़े बड़े शहरों में रह रही लड़कियां आज बहुत कुछ कर रही है.आज बेटियां माता पिता का एक सहारा भी है.बहुत घर ऐसे है जहाँ बेटे, जिन्हें घर का चिराग कहते है वो नहीं है फिर भी माँ बाप गर्व से कहते है कि हाँ लड़का नहीं है तो क्या हुआ मेरी बेटी है मेरा सहारा.बहुत ख़ुशी तब होगी  जब बात हो सफलता की  और नाम आये एक लड़की का. बस आज ज़रूरत है एक सकारात्मक पहल की जिसमे वो आगे बढे और विकास करें.परिवार के साथ साथ देश का नाम भी रोशन करें आज मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक लड़की हूँ.
धन्यवाद्.

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

कुछ कहूँ ?

मुझे कुछ कहना है,
क्यूँ कहना है
पता नहीं -दिशा  नहीं
समय के सापेक्ष में,
दृष्टि के बोध में,
कुछ कहना चाहती हूँ,
कुछ बुनना -गुनना चाहती हूँ.

माता पिता और उनकी आशाएं

आशा एक ऐसा  वाक्य है जिस पर पूरी दुनिया चल रही है.आशा कोई नाम नहीं बल्कि वो है जो किसी दूसरे से किसी इच्छा को पूरा करने के लिए की जाती है.आशा का पक्ष हर जगह अलग अलग तरह का है.आशाएं  अच्छी और बुरी दोनों है यहाँ तो बात आजकल के माता पिता की है जिनकी आशाएं अपने बच्चो से सबसे ज्यादा होती है आज की इस भौतिकवादी और प्रतिस्पर्धा वाली दुनिया में सभी एक दूसरे से आगे जाने की होड़ में होते है. उसमे हमारे माता पिता ये सोचते है कि इन सभी में हमारा बच्चा सबसे आगे हो और जब ऐसा नहीं हो पता तो वही पर सारी आशाएं टूट जाती है और उन्हें उन बच्चो के साथ बहुत दुःख होता है अगर देखा जाये तो आजकल के बच्चे विभिन्न तरह कि गतिविधियों में हिस्सा ले रहे और आगे आ रहे है जैसे खेल,संगीत,शिक्षा इत्यादि. चलन में बढ़ रहे रियलिटी शो ने इन्हें एक नयी पहचान दी है .आज इस शो ने छोटे छोटे गाँव और कस्बों के बच्चो कि निखरती प्रतिभा को एक नया मुकाम दिया है ये तो हुआ सकारात्मक पक्ष पर इन चीजों का एक नकारात्मक पक्ष भी उभरकर सामने आ रहा है जैसे कुछ दिन पहले कि घटना ने मुझे बहुत दुखी किया कि एक रियलिटी शो में सेलेक्ट न होने क कारण  एक बच्चे ने खुदखुशी कर ली.आज माँ बाप कि आशाओं  ने बच्चो को बहुत कुछ करने पर भी मजबूर कर दिया है.आगे जाने कि होड़ में सभी दिशा विहीन होते जा रहे है पर उधर थ्री इडियट,पटियाला हाउस जैसी फिल्मों ने कुछ हद तक इस रास्ते को मोड़  दिया है. विभिन्न आयामों में ऐसे ऐसे कोर्सो  के आ जाने से बच्चो के  सामने कई विकल्प है जिससे उन्हें आगे बढ़ने का मौका मिल रहा है आगे बढ़ने के  कारण फिर वही बात माँ बाप कि आशाएं भी बढ़ रही है.वो सोचते है कि उस भीड़ में उनका बच्चा सबसे अलग हो आगे जाये और उनका सर गर्व से ऊँचा हो सके.धन्य है वो माता पिता जिनके बच्चों ने उनका नाम रोशन किया है.एक सफल बच्चे के पीछे सबसे बड़ा हाथ उसके माता पिता का होता है तभी तो वो उस सफलता को पता है जिसके वो योग्य है.अंत में मेरा मानना  है कि सभी माता पिता को अपनी संतान पर पूरा भरोसा होना चाहिए कि वो ऐसा करेगा जिससे उनका नाम रोशन होगा और उसे उसी क्षेत्र में भेजना चाहिए जिसमे वो अपना बेस्ट कर सके और उसे पूरी स्वतंत्रता देनी चाहिए जिससे वो शारीरिक और मानसिक रूप से अच्छी तरह पनप सके.